
24 जुलाई 2021 का दिन भारत के लिए बेहद खास था. इस दिन भारत ने टोक्यो ओलिंपिक में अपना पहला पदक जीता था. अब 30 जुलाई 2022 का दिन भी बेहद खास हो गया क्योंकि इस दिन बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भारत अपना पहला गोल्ड मेडल जीत लिया. जिसकी संभावना थी बिल्कुल उसी अंदाज में ये गोल्ड मेडल भारत की झोली में आया. इन दोनों तारीखों का जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि इन दोनों की मुख्य पात्र है- मीराबाई चानू. भारत की स्टार वेटलिफ्टर. मीराबाई चानू ने बर्मिंघम में 201 किलोग्राम वजन उठाकर लगातार दूसरी बार CWG का गोल्ड जीत लिया. हालांकि, मीराबाई का सफर इतना आसान नहीं था.
सिडनी ओलिंपिक 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था और खुद को भारतीय खेलों में अमर कर दिया था. उनके साथ ही कुंजारानी देवी ने भी भारत में महिला वेटलिफ्टिंग को पहचान दिलाई. इन दिग्गजों से कई लड़कियां प्रभावित हुईं और इन्हीं में से एक थी मीराबाई चानू. मणिपुर से ही आने वाली कुंजारानी देवी ने खास तौर पर इस राज्य की मीराबाई पर खास असर डाला, जिसने मीरा को इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित किया.
लकड़ी के गट्ठर उठाकर ताकत का एहसास
मीराबाई चानू के नाम न सिर्फ ओलिंपिक मेडल है, बल्कि 49 किलोग्राम कैटेगरी में क्लीन एंड जर्क का ओलिंपिक और विश्व रिकॉर्ड भी है. यानी ताकत भरपूर है और इसका अंदाजा नन्हीं सी उम्र में ही हो गया था. मीराबाई की उम्र जब करीब 12 साल की थी, तो उनके परिवार ने इस ताकत को पहचाना और ये पता चला लकड़ी के उन भारी-भारी गट्ठरों से, जिन्हें परिवार की जरूरतों के लिए छोटी उम्र में ही मीराबाई आसानी से उठा लेती थीं. इसने फिर ट्रेनिंग की राह खोली.
वो दिल और हिम्मत तोड़ने वाली नाकामी…
शुरुआत तो हो गई थी, लेकिन असली चुनौती तो कम्पटीशन में आती है और वहां सफलता-असफलता का अपना असर पड़ता है. मीराबाई ने 2014 के क़ॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर जीतकर ही अपनी पहचान बनाई थी और फिर 2016 के रियो ओलिंपिक में जगह बनाई, जहां उम्मीदें काफी थीं. लेकिन पहली बार इतने बड़े इवेंट में उतरने में हर किसी को सफलता नहीं मिलती और मीराबाई के साथ भी यही हुआ. वो भी बेहद खराब अंदाज में- वह स्नैच और क्लीन एंड जर्क के 3-3 यानी कुल 6 प्रयासों में सिर्फ एक ही बार सफल हुईं और मेडल की रेस से बाहर हो गईं.
डिप्रेशन को पीछे छोड़ा
रियो की निराशा ने आखिर अपना असर दिखाया और मीराबाई पर अवसाद छाने लगा. उन्होंने कुछ वक्त के लिए खाना-पीना तक छोड़ दिया. हर वक्त बस यही सवाल कि इतनी मेहनत का ऐसा नतीजा कैसे? कोच विजय शर्मा ने ऐसे वक्त में उन्हें संभाला और फिर से ट्रेनिंग में वापसी कराई. धीरे-धीरे इसका नतीजा सामने आया. पहले 2017 वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा और फिर CWG 2018 में भी गोल्ड जीत लिया.
रिकॉर्ड और इतिहास रचने की मशीन
हालांकि, एक बार फिर रुकावट आई और इस बार पीठ की तकलीफ ने लंबा वक्त ले लिया. इस चोट से उबरने में उन्हें काफी वक्त लगा और जब आई तो शानदार वापसी की. 2022 की एशियन चैंपियनशिप में मीराबाई ने क्लीन एंड जर्क में 119 किलो वजन उठाकर विश्व रिकॉर्ड कायम कर दिया और ठीक एक साल बाद टोक्यो में उन्होंने अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा दिया. कुल मिलाकर संघर्ष के ये साल अब अपना अच्छा परिणाम देने लगे हैं.