
हरियाणा सरकार ने देसी कपास की खेती (Cotton Farming) और उसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक प्रोत्साहन योजना शुरू की है. जिसके तहत प्रति एकड़ 3,000 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के एक प्रवक्ता ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रोत्साहन राशि का लाभ लेने वाले किसानों को मेरी फसल मेरी ब्यौरा पोर्टल (Meri Fasal Mera Byora) पर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. जिसके लिए 30 जून, 2022 को अंतिम तारीख निर्धारित की गई है. उन्होंने बताया कि देसी कपास की बिजाई करने से जहां किस्मों की विविधता को बढ़ावा मिलेगा, वहीं कीटों से नुकसान होने की संभावना भी कम हो जाएगी. कृषि विभाग की इस योजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए टोल-फ्री नंबर 1800-180-2117 पर फोन करके किसान भाई-बहन जानकारी ले सकते हैं.
हरियाणा प्रमुख कॉटन उत्पादक सूबों में शामिल है. यहां कपास की बुआई लगभग पूरी हो चुकी है. पिछले साल की तुलना में हरियाणा में कपास की खेती 3 फीसदी की गिरावट के साथ 6,28,000 हेक्टेयर में दर्ज की गई है. हरियाणा सरकार ने इस साल राज्य में 7,00,000 हेक्टेयर में कपास की बुआई का लक्ष्य रखा था. उम्मीद है कि इस प्रोत्साहन योजना के जरिए देसी कपास के बहाने यहां कपास के रकबे में और वृद्धि होगी.
क्या देसी किस्म के कॉटन में नहीं होगा कीटों का हमला?
कुछ विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि बीटी कॉटन (Bt cotton) और अन्य गैर देसी कपास की किस्मों में कीटों का हमला ज्यादा होता है. इससे किसानों के खर्च में वृद्धि होती है और नुकसान की संभावना भी बनी रहती है. इसलिए सरकार देसी किस्मों को प्रमोट करने के लिए प्रति एकड़ तीन हजार रुपये देने का निर्णय लिया है.
एक तरफ हरियाणा सरकार देसी किस्मों के कॉटन की बुवाई में वृद्धि करके फसल को कीटों के नुकसान से बचाने की बात कर रही है तो दूसरी ओर यहां महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल और कनीना ब्लॉक में जल्दी बोए गए कपास में पिंक बॉलवर्म यानी गुलाबी सुंडी के हमले की जानकारी मिली है. पिछले साल भी यहां गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) के हमले से कॉटन की खेती को नुकसान पहुंचा था.
हरियाणा का कॉटन उत्पादक क्षेत्र
कॉटन की खेती में हरियाणा का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है. यहां के सिरसा और हिसार में इसकी ज्यादा खेती होती है. सिरसा में ही सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च स्थित है. इसके अलावा फतेहाबाद, रोहतक, भिवानी, जींद, पलवल, झज्जर रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ भी इसके प्रमुख कपास उत्पादक जिले हैं. फिलहाल, अगर आपने कॉटन के देसी किस्म की बुवाई की है तो 30 जून तक हर हाल में मेरी फसल मेरी ब्यौरा पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवा लें. ताकि, प्रोत्साहन राशि मिल जाए. कितने एकड़ तक इस योजना का लाभ मिलेगा इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है.