- एविएशन का प्रोफेशन जेंडर के मुताबिक नहीं है- लेखक, कैप्टन मनीषा एम पुरी
- विचारधारा-व्यापार को मिलाने से दोनो खत्म हो जाते हैं - श्री आरएन भास्कर
- कोई धर्म मानवता से बड़ा नहीं होता, कोई धर्म आतंक फैलाने की सलाह नहीं देता - श्रीमति निधि चाफेकर
- कोई भी काम टीम वर्क के बिना पूरा नहीं होता - सैयद अकबरुद्दीन
भोपाल । प्रदेश की राजधानी में स्थिति भारत भवन में हो रहे भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाने के लिए दर्शकों और श्रोताओं की भारी भीड़ इकट्ठा हुई। सुबह 10 बजे से शुरू हुए आयोजन में अलग अलग क्षेत्रों से जुड़े लेखकों ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया और अपनी किताबों पर सार्थक चर्चा की। आयोजन के दूसरे दिन श्री अभिलाष खांडेकर, लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटा.) आरएस भदौरिया, श्री बृजेश राजपूत, श्री सैयद अकबरुद्दीन समेत कई लेखकों ने अपने विचारों से दर्शकों को लाभान्वित किया।
दिन के सबसे चर्चित सत्र में श्री अभिलाष खांडेकर की लिखी किताब द सिंधिया लेगसी फ्रॉम रानोजी टु ज्योतिरादित्य, पर श्री सीके नायडू और उदय महुरकर जी की उपस्थिति में चर्चा की गई। किताब में सिंधिया राजवंश के इतिहास पर प्रकाश डाला है। श्री महुरकर जी ने कहा कि ऐसी किताब लंबे वक्त पहले ही आ जानी चाहिए थी।
किताब लिखने की प्रेरणा को लेकर किए गए सवाल पर खांडेकर जी ने बताया कि वो कभी इस बारे में नहीं सोचते, जब उन्हें किताब लिखने के लिए कहा गया तो शुरुआत में वो चकित रह गए, लेकिन जब उन्होंने इसके बारे में रिसर्च करना चालू किया तो पता चला कि सिंधिया राजघराने के बारे में कितना कुछ लिखा जा चुका है और अब भी कितना कुछ कहा जाना बाकी है।
लेखक ने बताया कि वो सिंधिया ही थे, जो ट्रेन औऱ तकनीक ग्वालियर तक लेकर आए थे। श्री खांडेकर जी ने महादजी सिंधिया को पूरे राजघराने का हीरो बताया और उससे जुड़े कई किस्से साझा किए।
इजराइल ने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा लेकिन हमेशा रणनीतिक तौर से अहम कदम उठाए - डॉ. शेशाद्री चारी
डॉ. शेशाद्री चारी ने स्क्वाड्रन लीडर (रिटा.) आरटीएस चिन्ना और श्री राकेश अग्रवाल जी से अपनी किताब द सागा ऑफ इज़राइल पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि कैसे इज़राइल ने इतने वर्षों तक दुश्मनों के बीच भी खुद का अस्तित्व बनाए रखा। श्री शेशाद्री चारी के मुताबिक ये इजराइल का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही था जिसके चलते उनका अस्तित्व आज भी बरकरार है। शेशाद्री जी के मुताबिक किसी भी देश के अंदर संस्कृति एक जैसी ही होती है, लेकिन सिविलाइजेशन परिस्थितियों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। इसके लिए हमें इजराइल से सीख लेनी चाहिए। इजराइल ने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा लेकिन हमेशा रणनीतिक तौर से अहम कदम उठाए।
विचारधारा-व्यापार को मिलाने से दोनो खत्म हो जाते हैं - श्री आरएन भास्कर
श्री आरएन भास्कर जी ने अपनी किताब गेम इंडिया पर शैलजा श्रीनिवास जी के साथ बातचीत करते हुए कहा कि 90 के दशक में उनकी मुलाकात डॉ. वर्गीस कुरियन से हुई थी। उन्होंने बताया कि काफी वक्त पहले ही कुरियन जी ने परिस्थितियों को देखते हुए बता दिया था कि देश दुग्ध उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ होने वाला है। अमूल की सफलता की कहानी के साथ ही श्री भास्कर ने श्री टीएमए पाई का भी ज़िक्र किया। पाई ने ग्रामीणों की मदद से 25-25 पैसे जोड़कर कैसे सफलता की सीढ़ियां चढ़ी, और गांव के साथ ही राज्य और देश के विकास में किस तरह योगदान दिया। इन कहानियों के जरिए उन्होंने बताने की कोशिश की कि अगर आपके आस-पास के लोग आगे नहीं बढ़ेंगे तो आप भी कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे।
उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसा कोई ना कोई आदमी पैदा होता ही है, जो सरकारी परेशानियों के बावजूद उबरते हुए देश को आगे बढ़ाने में मदद करता है। श्री भास्कर ने कहा कि जब भी व्यापार में विचारधारा को मिक्स किया जाता है, तो व्यापार और विचारधारा दोनों खराब हो जाते है।
कोई धर्म मानवता से बड़ा नहीं होता, कोई धर्म आतंक फैलाने की सलाह नहीं देता - श्रीमति निधि चाफेकर
श्रीमति निधि चाफेकर जी ने अपनी किताब अनब्रोकन पर बातचीत करते हुए ब्रसेल्स हमले के डरावने और अनकहे पहलुओं की चर्चा की। उन्होंने बताया कि धमाके के दिन उन्हें पहले से ही अजीब महसूस हो रहा था, लेकिन टीम को बेस शिफ्ट करना था। जैसे ही धमाका हुआ वो लोगों को बचाने के लिए भागी लेकिन तभी उनके सीनियर अफसर ने भयावहता को देखते हुए उन्हें रोक लिया। इसके कुछ ही देर बाद एक और धमाका हुआ जिसकी चपेट में वो भी आ गई। इस हादसे में कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी, निधि जी का पूरा शरीर जल गया था। अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मदद दी गई। हादसे के बाद उनकी मां ने किताब लिखने की सलाह दी। श्रीमति निधि जी ने बताया कि उस भयावह दृश्य को याद करके कई-कई दिन वो कुछ लिख नहीं पाती थीं, केवल पूरे दिन रोती ही रहती थीं, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाकर उन्होंने किताब लिखी।
मेजर जनरल (रिटा.) आरएस भदौरिया ने कैसे टूटे मनोबल वाली यूनिट को संभाला, 20 खतरनाक आतंकियों का सफाया किया
रिटायर्ड मेजर जनरल आरएस भदौरिया जी की किताब द डे दैट चेंज्ड इट ऑल की किताब पर भी भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल में चर्चा की गई। ये किताब कश्मीर में मिलिट्री ऑपरेशन्स के बारे में गहराई से जानकारी देती है। रिटायर्ड मेजर जनरल आरएस भदौरिया जी ने बताया कि 2002 में कश्मीर में आतंक बढ़ रहा था कि इस दौरान ग्रेनेडियर्स की एक यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर को गोली मार दी गई। पूरी यूनिट का मनोबल टूट गया। ऐसे में श्री आरएस भदौरिया जी को कमान दी गई। अपने कार्यकाल में उन्होंने कैसे पूरी यूनिट का मनोबल बढ़ाया, और आतंकियों का सफाया करने का जिम्मा उठाया इसके बारे में ही किताब है। भदौरिया जी ने बताया कि अपने कार्यकाल के आखिरी दिन उनकी टीम ने 5 आतंकियों का सफाया किया था। इस तरह उन्होंने अपने कार्यकाल मे ना केवल 20 आतंकियों का सफाया किया, बल्कि घाटी को उसके हिस्से की हंसी-खुशी भी वापस लौटाई।
कहानियां लिखने से पहले कहानियां पढ़ें - श्री बृजेश राजपूत
एबीपी न्यूज के वरिष्ठ संवाददाता श्री बृजेश राजपूत जी ने श्री शरद द्विवेदी जी से बातचीत करते हुए अपनी किताब ऑफ द कैमरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि निजी तौर पर पत्रकार के लिए खबरों का नजरिया एडिटोरियल व्यू से अलग हो सकता है। इसी नजरियो को संभवतः उन्होंने किताब में पेश करने की कोशिश की है।
शरद जी ने श्री बृजेश राजपूत जी की तारीफ करते हुए कहा कि वो विद्वता को पढ़ने वालों की तरफ ढकेलते नही हैं, बल्कि किस्सागोई के अंदाज में अपनी कहानी बयां करते हैं।
श्री बृजेश राजपूत जी ने भी कहा कि किस्से हर किसी के पास होते हैं, बस उन्हें कहना या व्यक्त करना आना चाहिए। समय सीमा के चलते पूरी कहानी टीवी पर कही नहीं जा सकती, इसीलिए उन किस्से-कहानियों को किताब की शक्ल में पिरोकर पेश किया गया है। किताब पर चर्चा करते हुए श्री बृजेश जी ने कहा कि जहां से लोग भाग रहे होते हैं, उसी ओर पत्रकार को भागना होता है। इस किताब में उन्होंने कोविड, पलायन और कांग्रेस की सरकार गिरने जैसे मुद्दों पर रोशनी डालने की कोशिश भी की है।
सत्र में मौजूद बच्चों को श्री राजपूत जी ने सलाह दी कि वो कहानियां लिखने से पहले कहानियां पढ़ें और उसके बाद लिखना शुरू करें।
सोशल मीडिया में डूबे युवाओं के बीच ऐसे आयोजन करने के लिए श्री बृजेश राजपूत जी और श्री शरद द्विवेदी जी ने आयोजक श्री राघव चंद्रा जी का शुक्रिया अदा किया।
कोई भी काम टीम वर्क के बिना पूरा नहीं होता - सैयद अकबरुद्दीन
लेखक और यूएन में भारत के पूर्व प्रतिनिधि रहे श्री सैयद अकबरुद्दीन की किताब इंडिया वर्सज यूके पर भी चर्चा हुई। इस किताब में 2017 में आईसीजे (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस) की बेंच में जगह को लेकर हुए चुनाव की पूरी कहानी बताई गई है। इस चुनाव में भारत और ब्रिटेन के कैंडिडेट्स के बीच मुकाबला था, इसे राजनैतिज्ञों ने कैसे अपनी कुशलता के साथ अंजाम दिया और भारत को सीट दिलाई, इसी की कहानी किताब में कही गई है।
चर्चा के दौरान श्री अकबरुद्दीन ने कहा कि ये काम कोई अकेले नहीं कर सकता था, इसके लिए टीम वर्क की जरूरत होती है। उन्होंने यूक्रेन क्राइसिस का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में हजारों भारतीयों को वहां से निकालने में सभी लोगों की सहभागिता होती है। इसी तरह से देश और देश के बाहर भी कामों को अंजाम दिया जाता है।
फैशन में क्रिएटिविटी लाने के लिए मंदिर, महलों और मिनारों से भी सीखा- फैशन डिजाइनर मुमताज
दूसरे दिन के पहले सेशन में लेखक वर्तुल सिंह एवं फैशन डिजाइनर ने एथनिक फैशन्स ऑफ भोपाल एंड इट्स बेगम पर चर्चा की। बातचीत में फैशन डिजाइनर मुमताज खान ने कहा कि फैशन हमारी, परंपरा, संस्कृति और जड़ है। भोपाल में एक ऐसी बेगम थीं जिन्होंने क्राफ्ट का स्कूल शुरू किया। जहां स्टूडेंट्स को कुरेशिया, जरी- जरदोजी, लकड़ी के खिलौने एवं अन्य कई कलात्मक गतिविधियां सिखाई जाती रही। जरी जरदोजी का मतलब बताते हुए कहा कि जरी का मतलब होता है जेवर और जरदोजी का मतलब है गढ़ना। जरी जरदोजी की सुई को आरी कहा जाता है और जरी का काम करने के लिये चांदी, सोने एवं धागे से टांके लगा कर काम किया जाता है। लेकिन आज हर कोई कुछ भी काम करके जरी जरदोजी बता देता है। हमारे शहर में फैशन की विरासत रही है। भोपाली ड्रेस का इजात भोपाल में हुआ जिसे तुर्की जोड़ा भी कहा जाता है। तुर्की में इस तरह की ड्रेस पहनी जाती है। इसमें क्रॉप, चूड़ीदार पयजामा और 5 मीटर का दुपट्टा होता है। बात जब फैशन की होती है तो उसे फैशन टीवी से जोड़ा जाता है। आज भारत में फैशन के ट्रेडिशन पर काम किया जा रहा है। भोपाल में राग भोपाली कार्यक्रम के द्वारा हमारी परंपरा को संजोया जा रहा है। इससे कहीं न कहीं फैशन तो सहेजा जा सकेगा साथ ही इसके कारीगर एवं उन्हें आगे बढ़ने का अवसर भी मिलेगा। लेखक वर्तुल सिंह ने भी चर्चा में फैशन के बारे में बताया। उन्होंने फैशन डिजाइनर मुमताज खान से पूछा कि फैशन पर काम करने के लिये आपको प्रेरणा कहां से मिलती है। डिजाइनर मुमताज ने कहा कि उन्हें नेचर से प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि तालाब की लहरों और पानी के रंग को देखकर एक ड्रेस तैयार की है। इसके साथ ही कई चित्रकारों से भी बात की गई है एवं मंदिर, महलों और मिनारों से भी सीखने काम करने का मौका मिलता है। फैशन वीक के लिये एक ड्रेस खजुराहो के मंदिरों को देखकर ही तैयार की थी। इस सेशन के दौरान उन्होंने अपना पीपीटी एवं जरी जरदोजी का प्रयोग कर तैयार की गई ड्रेस को भी प्रदर्शित किया।
एविएशन का प्रोफेशन जेंडर के मुताबिक नहीं है- लेखक, कैप्टन मनीषा एम पुरी
कैप्टन मनीषा एम पुरी की पुस्तक फॉर्म सारीज टू स्ट्राइप्स पर चर्चा की गई। इस सेशन में निधी छापेकर, डॉ. मीरा दास और स्मिता सिंह ने चर्चा में हिस्सा लिया। कैप्टन मनीषा ने अनुभव शेयर करते हुए कहा कि यह पुस्तक 19 महिला पायलेट्स और उनके करियर पर आधारित है। उन्होंने बताया कि साल 1935 से आज तक की यह यात्रा है। जिसमें साल 1935 में लाहौर फ्लाइंग क्लब में पायलेट सरला ठकराल थीं जो भारत की सबसे पहली महिला पायलेट थीं। उन्होंने अपने पति से जब पायलेट बनने की बात कही तो उनके पति ने कहा पहले सायकिल, गाड़ी चलाकर दिखाओ। लेकिन सरला जी के फादर इन लॉ (ससुर) पायलेट बनने के लिये प्रेरित किया। सरला जी जब पायलेट बनीं तो उस समय उनकी चार साल की बेटी थी और वे साड़ी पहन कर एयरक्राफ्ट चलाया करतीं थीं। लेखक मनीषा ने बताया कि वे सरला जी से दिल्ली में मिली और समय वे 93 साल की थीं। यह सब उन्होंने कॉन्फिडेंस से ही हासिल किया। यह पुस्तक महिला पायलेट की अलग अलग परिस्थियों पर आधारित है। वहीं सभागार में स्कूल, कॉलेज से आईं छात्र- छात्राएं भी मौजूद रहीं। बात चीत में स्टूडेंट्स से कहा कि मन में जो ठान लो वह जरूर हासिल करना चाहिए। हमेशा परिस्थति से लड़ना चाहिए। एविएशन फील्ड महंगा जरूर है लेकिन आज कई संस्थाओं द्वारा स्कॉलरशिप भी दी जा रही है। साथ ही एविएशन स्कूल 50 प्रतिशत डिस्काउंट कर रहे हैं। यह प्रोफेशन जेंडर के मुताबिक नहीं है। चर्चा के दौरान स्मिता सिंह ने पुस्तक के टाइटल पर चर्चा की जिसपर लेखक मनीषा ने कहा कि इस बुक के टाइटल पर सभी लोग प्रश्न करते हैं। टाइटल सरला जी को देखकर ही चुनाव किया गया है। बातचीत में उन्होंने पायलेट के कार्य अनुभव में एक दुर्घटना के बारे में भी बात की। साथ ही उन्होंने कहा कि आज आसमान में बहुत ट्रेफिक बढ़ गया है। साल 1993 में हुई दुर्घटना में उन्होंने कहा कि जब वे को-पायलेट थीं, तब एक बार एयरक्राफ्ट के पीछले हिस्से में आग लग गई थी, हमें जल्द ही डिसीजन लेना था और हमने एक रनवे में एयरक्राफ्ट को उतारा लेकिन कई कैजुअल्टीज हुईं और हमने आधे से ज्यादा पैसेंजर को बचा लिया था। एविय़ेशन फील्ड में एक से आधा मीनट में डिसीजन लेना होता है। यहां डिजीजन लेने में देरी नहीं कर सकते हैं।