
बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay HC) ने 18 साल की अविवाहित लड़की को 26 सप्ताह के गर्भ को मेडिकल रूप से समाप्त करने की अनुमति दी है. कोर्ट का कहना है कि अबॉर्शन से लड़की के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होना चाहिए. बुधवार को पारित एक आदेश में जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस माधव जामदार की बेंच ने याचिकाकर्ता को उसकी गर्भावस्था को मेडिकल रूप से खत्म करने (Terminate Pregnancy) की अनुमति दी. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि महिला के प्रेग्नेंसी का लड़की के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा, कोर्ट को इस बात को भी ध्यान में रखना होगा.
अविवाहित लड़की (Unmarried Girl) ने हाई कोर्ट से अपनी प्रेग्नेंसी खत्म करने की अमुमति मांगी थी. कोर्ट के निर्देश पर मुंबई के जेजे अस्पताल में डॉक्टर्स के एक पैनल ने प्रेग्नेंट महिला की जांच की थी. उसने कहा था कि वह शादीशुदा नहीं है, इसीलिए वह 9 महीने तक बच्चे के अपने पेट में नहीं रख सकती. जांच के बाद डॉक्टर्स ने कोर्ट को बताया कि भ्रूण पूरी तरह से स्वस्थ है. उसकी प्रेग्नेंसी से उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) को कोई खतरा नहीं होगा.
कोर्ट ने दी प्रेग्नेंसी खत्म करने की इजाजत
बता दें कि वर्तमान मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम 20 सप्ताह से अधिक की प्रेग्नेंसी को खत्म करने की अनुमति नहीं देता है. अगर मां की जान को खतरा है तब ही इसकी परमिशन दी जाती है. हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट समेत अपीलीय अदालतों ने पहले भी कई मौकों पर महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 20 सप्ताह से ज्यादा की प्रेग्नेंसी को खत्म परने की परमिशन दी है. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल पैनल अगर कहता है कि इसका प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा तो अबॉर्शन की अनुमति दी गई है.
‘लड़की की प्रेग्नेंसी पूरे परिवार के लिए गलत’
अधिनियम में संशोधन के बाद प्रेग्नेंसी खत्म करने की समय सीमा को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया जाएगा. संशोधित अधिनियम अभी लागू किया जाना है. मौजूदा केस में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि लड़की सिर्फ 18 साल की है. उसके तीन और अविवाहित भाई-बहन हैं. उनकी मां सब्जियां बेचकर घर चलाती है. लड़की के पिता एक रिक्शा चालक हैं. बेंच ने कहा कि डॉक्टरों का पैनल उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और भविष्य में उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गर्भावस्था के प्रभाव पर विचार करने में फेल रहा है.
कोर्ट ने कहा कि कम उम्र में बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर करना लड़की के साथ उसके पूरे परिवार के लिए विनाशकारी हो सकता है. लेकिन दुर्भाग्य से मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में इस बातों पर ध्यान नहीं दिया. इसके बाद कोर्ट ने लड़की को मुंबई के जेज अस्पताल में अबॉर्शन कराने की इजाजत दे दी.