
बिहार (Bihar) के छात्र जुनूनी होते हैं. अपने लक्ष्य के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करने से पीछे नहीं रहते हैं. वो जानते हैं कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है और इसलिए वो जी तोड़ मेहनत करते हैं. वो संसाधन की कमी का रोना नहीं रोते हैं और उसे अपने रास्ते का रोड़ा भी नहीं बनने देते हैं. वो अजीब से अजीब परिस्थियों में पढ़ाई कर लेते हैं. ऐसा ही एक अजीब पढ़ाई का केंद्र हुआ करता था सासारम रेलवे स्टेशन.
बिहार में करीब 20 साल पहले सासाराम (sasaram railway station) में एक क्लास शुरू हुआ था जिसकी चहुओर चर्चा थी. यह क्लास सासाराम स्टेशन प्लेटफार्म पर था, जो हर रोज रात में यहां चलता था. खुले आसमान के नीचे जमीन पर. यहां सुपर थर्टी की तरह 30 छात्र नहीं बल्कि 300 से ज्यादा छात्र रोज पढ़ने के लिए जमा होते थे और फिर रेलवे की रौशनी तले अपने जीवन को रौशनी देने में कामयाब होते थे. इस दौरान यहां 10 हजार से ज्यादा छात्रों ने सरकारी नौकरी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की. यहां कोई शिक्षक नहीं था और ना कोई कोई ट्यूशन फीस ली जाती थी.
यहां पढ़ने वाले छात्रों ने स्टेशन मास्टर, टैक्नीशियन, टीटीई, गुड्स गार्ड, टैक्नीशियन जैसे रेलवे की नौकरी के साथ बैंक पीओ, बिहार पुलिस दरोगा. जीडी, एसएससी जैसी प्रतियोगी प्ररीक्षाओं में झंडे गाड़े. इसके साथ ही बीपीएसी की परीक्षा पास कर अधिकारी भी बने हैं, लेकिन अब यह क्लास बंद हो गया है. रेलवे स्टेशन पर चलने वाली इस क्लास को रेलवे प्रशासन ने बंद करा दिया है.
छात्रों ने किया था उपद्रव और बंद हो गई क्लास
दरअसल यहां अक्टूबर 2019 में रेलवे की कथित निजीकरण की खबर के बाद हजारों की संख्या में छात्र जुटे थे और जमकर उत्पात मचाया था. तब आरोप लगा था कि उस प्रदर्शन में सासाराम रेलवे स्टेशन पर बैठकर पढ़ने वाले छात्र भी थे. जमकर पत्थरबाजी और तोड़फोड़ हुआ था. प्रदर्शन में सासाराम एसपी समेत कई रेलवे अधिकारी चोटिल हो गए थे. जिसके बाद प्लेटफॉर्म शेड के तले चलने वाला ये क्लास बंद हो गई. साथ ही उन हजारों छात्रों की पढ़ाई का भी नुकसान हुआ जो यहां आकर पढ़ना चाहते थे कुछ बनना चाहते थे.
छात्रों का हो रहा है नुकसान
यहां पढ़कर भारतीय रेल में नौकरी करने वाले रमेश कुमार ने बताया कि सासाराम रेलवे स्टेशन का उनकी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. वो आज जो कुछ भी है वह यहां बैठकर की पढ़ाई की वजह से हैं. यहां पढ़ने वाले हजारों छात्रों ने सरकारी नौकरी प्राप्त की है. उनके मित्र और जानने वाले छात्र फैजान अहमद, रेलवे गुड्स गार्ड, मुकेश कुमार गुड्स गार्ड, आशुतोष कुमार टैक्नीशियन, मिथलेश कुमार, टैक्नीशियन, विपिन कुमार, रेलवे कर्मचारी, मुन्ना कुमार, बैंक पीओ आज भी इस दौर को याद कर भावुक हो जाते हैं. लेकिन यहां जिस तरह से घटनाक्रम हुआ और फिर यहां बैठकर पढ़ाई करने पर रोक लग गई, उससे मेहनती और गरीब छात्रों का बहुत नुकसान हुआ है.
बिजली की आंख मिचौली के बाद शुरू हुई क्लास
करीब 20 साल पहले सासाराम में बिजली की आंख मिचौली से परेशान होकर 4-5 छात्रों ने यहां रात में पढ़ना शुरू किया था. रेलवे की रौशनी में बैठकर पढ़ने वाले ये छात्र जब कामयाब होने लगे, तो यहां आकर पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ने लगी. जिसके बाद 300 से 400 छात्र यहां बैठकर पढ़ने लगे और साल दर साल यहां से सैकड़ो की संख्या में छात्र सफल होने लगे.
यहां पढ़ने वाले ज्यादतर वो छात्र होते थे जो कोचिंग क्लास की फीस देने में असमर्थ थे. वो यहां बैठकर पढ़ते थे और ग्रुप डिस्कशन करते थे, एक दूसरे से नोट्स शेयर करके पढ़ाई करते थे और सफलता प्राप्त करते थे. रेलवे प्रशासन ने भी उनको तब खूब सहयोग किया था. पटना से यहां पढ़ने वाले छात्रों का आईकार्ड बनाकर भेजा गया था. छात्र जहां पढ़ते थे वहां बल्ब फ्यूज होने के बाद उसे तत्काल बदलवा दिया जाता था. तो वहीं तात्कालीन स्टेशन मास्टर ने तब साफ पीने की पानी की भी व्यवस्था कराई थी.
ये भी पढ़िए- Bihar: तेजप्रताप ने कहा लालू बंधक हैं, JDU बोली- SDO के पास आवेदन करिए, उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी