
आज महाराष्ट्र का मशहूर त्यौहार बैल पोला मनाया गया है. जिसमें किसान भाई उनका सत्कार करते हैं. सजाते हैं, दुलारते हैं. लेकिन यहां के कई क्षेत्रों में इनकी संख्या तेजी से घट रही है. महाराष्ट्र के अमरावती में हमेशा से कृषि कार्य में बैलों का प्रयोग होता रहा है. यहां किसानों के पास पशुओं की अच्छी खासी संख्या होती थी. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. अब इस जिले में गायों की कमी सामने आने लगी है. विशेषज्ञ इसके पीछे का बड़ा कारण बढ़ता कृषि मशीनीकरण और मजदूरों की अनुपलब्धता बता रहे हैं. पशुगणना की रिपोर्ट देखें तो लगातार जानवरों की कमी आई है. लगातार गायों, बैलों की कमी आने से यहां के चांदुर बाजार तालुका के किसान चिंतित हैं.
राज्य में हर पांच साल में पशुधन की गणना की जाती है. इसमें मवेशी, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़े, गधे, सूअर और अन्य जानवर शामिल होते हैं. वर्ष 2012-13 में चांदुर बाजार तालुका में 16 हजार 620 नर गायें थीं. 2018-19 की पशुधन गणना में यह संख्या 9410 हो गई है. पिछले पांच वर्षों में नर सांडों की संख्या में 7210 (42%) की कमी आई है. पशुपालकों का कहना है कि इन्हें पालना कठिन है. रिटर्न उतना अच्छा नहीं आता. आज भी महाराष्ट्र में गाय का दूध बोतलबंद पानी के भाव बिक रहा है. फिर कोई क्यों पशुपालन करेगा.
हर साल कितने बैल कम हुए
चांदुर बाजार तालुका में हर साल 1442 बैलों की कमी आई है. वहां के किसान कहते हैं कि यह बड़ा चिंता का विषय है. क्योंकि गायों से मिलने वाला दूध, गोमूत्र और गोबर का काफी जगह उपयोग होता है. ऐसे में गायों की कमी से कहीं न कहीं किसानों का ही नुकसान है. इनके गोबर की खाद का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है. इनके गोबर की खाद से फसल की उत्पादकता भी बनी रहती है और उसकी गुणवत्ता भी.
उत्तम दर्जे के बैलों की कीमत
भले ही बैल अब कम होने लगे हैं लेकिन उनकी कीमत लाखों में है. क्योंकि उनकी कई तरह से प्रासंगिकता अब भी कायम है. महाराष्ट्र में आज भी गाय और बैल को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. किसानों के लिए ये पशु मां लक्ष्मी जैसा स्थान रखते हैं. उनके लिए बैल पोला उत्सव मनाया जाता है. ट्रैक्टर के जमाने में भी काफी किसान खेती के लिए बैलों पर निर्भर हैं. इसलिए किसान अपने गाय और मवेशियों को भगवान मानते हुए साल में एक बार उनकी पूजा करते हैं. ऐसे में उत्तम दर्जे के बैलों की कीमतें एक लाख से अधिक पहुंच गई है. जिसे आम किसानों के लिए खरीद पाना मुश्किल है.
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