
समानता और एकता की बात करने वाले तालिबान (Taliban) ने पंजशीर पर कब्जे के बाद अपना क्रूर चेहरा दिखाया है. पंजशीर प्रांत के बाजारख शहर में तालिबान के लड़ाकों ने अहमद शाह मसूद के मकबरे पर तोड़फोड़ की. तालिबान के लड़ाकों ने यहां शीशों को तोड़ा और अहमद शाह मसूद से जुड़ी कई बाकी चीज़ों को भारी नुकसान पहुंचाया. अहम बात ये है कि आज ही अहमद शाह मसूद की 20वीं बरसी है, 9 सितंबर 2001 को अलकायदा के फिदायीन आतंकियों ने अहमद शाह मसूद की हत्या कर दी थी.
साफ है तालिबान की कथनी और करनी में बड़ा फर्क है. खौफ और दमन उसके ऐजेंडे में सबसे ऊपर है. यही वजह है कि जिन सड़कों पर आपने कल तक विद्रोह देखा था. वहां 24 घंटे के दमनचक्र के बाद सन्नाटा छाया है. 24 घंटे पहले के काबुल में सड़कों पर शोर है. जनता का निडर विद्रोह है. त्राहिमाम कर रही अवाम की जुबां पर पाकिस्तान मुर्दाबाद. पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे हैं.
तालिबानी अत्याचार से बेखौफ हजारों महिलाओं ने चार दिन पहले जब बुर्का फेंककर सड़कों का रुख किया. तो आम अफगान अवाम भी उनके साथ खड़ी होती गई और जैसे-जैसे अफगान अवाम ने सड़कों का रुख करना शुरू किया मुल्क की तस्वीर बदलती गई.
कुछ ही देर में बदल गई काबुल की तस्वीर
जैसे ये अवाम, सिर पर कफन बांधकर घर से निकली थी. जिसे ना तो हथियारों से लैस तालिबानियों का डर था. ना ही ताबड़तोड़ गोलीबारी का खौफ था और ना ही शरीर पर बरसते कोड़ों का दर्द था. ये तो सिर्फ गुस्सा था. अफगानिस्तान को गुलाम बनाने वाले तालिबान के खिलाफ और तालिबान की हर खूनी साजिश में साथ देने वाले पाकिस्तान के खिलाफ. लेकिन 24 घंटे में ही काबुल की तस्वीर बदल गई.
तालिबान ने चौबीस घंटे के अंदर ऐसा दमन चक्र चलाया कि जहां आजादी का शोर था वहां सन्नाटा पसर गया. कल तक जिन सड़कों पर आतंक के खिलाफ विद्रोह था. वहां सिर्फ और सिर्फ तालिबानी लड़ाके नजर आने लगे. पार्क खाली नजर आए. झूले खाली पड़े रहे. मानों पूरे देश में सिर्फ आतंक को ही झूला झूलने की आजादी हो.
24 घंटे में ही कमरे में कैद हो गई अफगान आवाम
चौबीस घंटे के अंदर आतंक ने ऐसा कहर मचाया कि पूरे काबुल की अवाम अपने कमरे में कैद हो गई. बाजार में सन्नाटा पसर गया और दुकानों पर ताले लग गए. अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि 24 घंटे के अंदर ही जन विद्रोह की आवाज दब गई. जिन्हें तालिबान के बदलते तेवर पर गुमान था उन्हें ये तस्वीर जरूर देखनी चाहिए. क्योंकि ये तालिबान की सच्चाई है. जो जन विद्रोह से डरता है और जिसने फरमान जारी कर रखा है कि न्याय मंत्रालय के आदेश से प्रदर्शन करने के लिए पहले से ही अनुमति लेनी होगी. मंत्रालय को प्रदर्शन का उद्देश्य बताना होगा. नारा क्या लगाएंगे ये भी बताना होगा.
किस जगह पर प्रदर्शन करना है ये भी बताना होगा और 24 घंटे पहले सुरक्षा एजेंसियों को भी बताना होगा. इस आदेश के आते ही तालिबान ने जन विद्रोह को अपनी बर्बर बूटों से कुचलना शुरू कर दिया. अत्याचार की सारी हदें पार कर दी. कहीं बंदूक के दम पर तो कहीं कोड़े बरसा कर. अब तक बड़ी-बड़ी बातें कर रहे तालिबानियों के जुल्म के निशान पत्रकारों की पीठ पर नजर आने लगे हैं. जिन्हें तालिबान ने जन विद्रोह को कवर करने की सजा दी है.
तालिबान ने काबुल में एक दैनिक समाचारा पत्र एटिलाट्रोज के पांच पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया. हिरासत में लिए गए पांचों पत्रकारों को इतनी बेरहमी से पीटा कि रिहा होने के बाद तालिबान की सच्चाई उजागर करने वाले ये पत्रकार पैरों पर खड़ा होने के काबिल तक नहीं थे.
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