
अफगानिस्तान की नई हुकूमत में पाकिस्तान का दखल बढ़ता ही जा रही है. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक आर्थिक मामलों के मंत्री उमर अयूब खान की अध्यक्षता में एक बैठक हुई. जिसमें अफगानिस्तान के साथ आर्थिक सहयोग पर चर्चा की गई. मतलब अब पाकिस्तान खुद ही तालिबानी हुकूमत की मदद की बात कबूल कर रहा है. इधर तालिबान ने पहली बार भारत से औपचारिक बात करते हुए दोनों देशों के बीच उड़ान सेवा को फिर शुरू करने की अपील की है.
अफगानिस्तान के कार्यकारी उड्डयन मंत्री अलहाज हमीदुल्लाह ने भारतीय उड्डयन महानिदेशक अरुण कुमार के नाम चिट्ठी लिखी है. जिसमें दोनों देशों के बीच एमओयू का हवाला देते हुए यात्रियों की आवाजाही के लिए फ्लाइट्स को जरूरी बताया गया है. तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान की सिविल एविएशन अथॉरिटी आपसे अपील करती है कि जल्द ही दोनों देशों के बीच कमर्शियल फ्लाइट्स का संचालन शुरू किया जाए.
लेकिन, दूसरी ओर तालिबानी हुकूमत में अराजकता चरम पर दिखने लगी है. खुलेआम लोगों की हत्याएं हो रही हैं. उनके अधिकारों को कुचला जा रहा है. तखार प्रांत में तालिबानियों ने एक मासूम की इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि उसका पिता पंजशीर के रेजिस्टेंस फोर्स से जुड़ा था. जबकि काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने कहा था कि लड़ाई खत्म हो गई है और उसने सबको माफ कर दिया है. जबकि अभी हालात ये हैं कि अफगानिस्तान में विदेशी फोर्स और नॉर्दर्न एलायंस के मददगारों को ढूंढ-ढूंढकर मारा जा रहा है. यहां तक कि तालिबान के खिलाफ जो कोई आवाज़ उठाता है, उसे भी सजा-ए-मौत दी जाती है.
महिलाओं पर जुर्म और ज्यादती कर रहा तालिबान
तालिबानी हुकूमत में महिलाओं ने हक की आवाज उठाई, तो आधी आबादी पर तालिबानी बर्बरता सरेआम दिखी. काबुल से कंधार तक तालिबानियों ने महिलाओं पर जुर्म और ज्यादती की. यानी अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत में आवाम की आवाज़ का गला घोंटा जा रहा है, जिसकी ताजी तस्वीर हेरात प्रांत से आई है. अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में तालिबानी लड़ाके एक पत्रकार को जबरन इसलिए पकड़कर ले गए, ताकि उसके पास से खबर बाहर ना जा पाए. अब जानिए कि पूरा मामला क्या है?
दरअसल हेरात में तालिबान के खिलाफ एक प्रदर्शन चल रहा था. इस प्रदर्शन में स्थानीय फोटोग्राफर मुर्तजा समादी भी पहुंचा था. लेकिन मुर्तजा के द्वारा तालिबान विरोधी प्रदर्शन को कवर करना तालिबानियों को नागवार गुजरा. तालिबानियों ने फोटोग्राफर मुर्तजा पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया. उसे पकड़कर साथ ले गए. मारपीट की और फांसी की सजा तक सुना दी. पिछले हफ्ते भी तालिबानियों ने एक पत्रकार होनर अहमद की हत्या कर उसके शव को हेरात शहर के मुख्य चौराहे पर क्रेन से लटका दिया था.
लगातार देश छोड़ रहे हैं अफगानिस्तान के खिलाड़ी और कलाकार
मतलब तालिबान, अफगान आवाम को ये मैसेज देना चाहता है कि खिलाफत का अंजाम मौत है. तालिबान की नापसंदगी का मतलब जान से हाथ धोना है. आपको बता दें कि ये वही तालिबान है जिसने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के वक्त बदले हुए इमेज की बात की थी. बराबरी और आजादी का दावा किया था. लेकिन रवैया वही बीस साल पुराना है. महिलाओं के खिलाफ भी जुर्म और ज्यादती भी दो दशक पुरानी ही दिख रही है.
तभी एक-एक कर अफगानिस्तान की महिला खिलाड़ी और कलाकार देश छोड़ रहे हैं. इनमें नया नाम है मीना वफा. अफगानिस्तान में गीत-संगीत पर रोक लगने के बाद, मीना वफा अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गई हैं. फिलहाल वो रावलपिंडी में रही रही हैं. लेकिन वहां उन्हें अपने मुल्क और मौसिकी की फिक्र सता रही है. सिर्फ संगीत ही नहीं, बल्कि पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरी तक हर जगह तालिबानियों ने बंदिशें लगा रखी हैं. एक-एक कर महिलाओं से हक छीने जा रहे हैं. ताजा मामला काबुल यूनिवर्सिटी का है. जहां, महिलाओं के पढ़ने और पढ़ाने पर पाबंदी लगा दी गई है.
तालिबान की ओर से नियुक्त यूनिवर्सिटी के नए चांसलर मुहम्मद अशरफ गैरत ने एलान किया कि महिलाओं के बतौर छात्रा या शिक्षिका प्रवेश करने पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी गई है. आपको बता दें कि दो हफ्ते पहले तालिबान ने पीएचडी होल्डर मुहम्मद उस्मान को हटाकर बीए पास मुहम्मद अशरफ को काबुल यूनिवर्सिटी का चांसलर बना दिया. जिसके विरोध में वहां 70 शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया. तालिबान राज में सिर्फ यूनिवर्सिटी ही नहीं बल्कि स्कूली लड़कियों को भी भविष्य का डर सता रहा है. उन्हें इस बात की फिक्र है कि तालिबान लड़कियों को सेकेंडरी स्कूलों में दोबारा पढ़ाई शुरू करने की इजाजत देगा या नहीं? कुल मिलाकर तालिबान में 20 साल पुराना दौर लौट आया है. जहां इस्लाम के नाम पर तालिबानी अत्याचार बढ़ता जा रहा है और अवाम त्राहिमाम कर रही है.
शरीयत को लेकर चौंकाने वाली बात
इन सबके पीछे तालिबान की दलील शरीयत कानून की है. तालिबान ये दावा करता है कि जो कुछ इस्लाम के मुताबिक हराम है वो उसके राज में नहीं होना चाहिए. जबकि उसके डायरेक्टर मुल्क पाकिस्तान से शरीयत को लेकर चौंकाने वाला डाटा आया है. दरअसल कुछ समय पहले प्यू रिसर्च सेंटर ने पाकिस्तान में एक सर्वे किया था, तो पता चला कि वहां 84 फीसदी मुलसमान शरीयत के पक्ष में हैं. लेकिन जो पार्टियां शरीयत लागू करना चाहती हैं उन्हें महज पांच-सात प्रतिशत वोट मिलते हैं.
इस सर्वे में सिर्फ 9 फीसदी पाकिस्तानी तालिबान या इस्लामिक स्टेट के समर्थक मिले और 72 प्रतिशत पाकिस्तानी नागरिक तालिबान विरोधी मिले. इसी तरह का हाल इंडोनेशिया का भी है..जहां 72 फीसदी लोग शरीयत के पक्षधर हैं. मगर चार प्रतिशत लोगों ने ही इस्लामिक स्टेट का समर्थन किया. यही हाल ईरान, तुर्की, सीरिया, मिस्र और बाकी मुस्लिम देशों का है.
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