
तालिबान के नए गुरु चीन के साथ भी रिश्ते को लेकर अमेरिका की आलोचना होने लगी है. दरअसल जिस चीन के साथ पिछले डेढ़ साल अमेरिका की तलवारें खिची रहीं, अमेरिकी अदावत के चलते दुनियाभर के देशों ने ड्रैगन को दुश्मन बना लिया अब उसी मुल्क के साथ अब अमेरिका रिश्ते सुधारने की कवायद कर रहा है. सात महीने बाद अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच करीब डेढ़ घंटे तक फोन पर बातचीत हुई है.
हाल ही में अमेरिका ने इस नीले रणक्षेत्र में दो एयरक्राफ्ट कैरियर और बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान तैनात किए, जिससे घबराए चीन ने भी अपने कृत्रिम द्वीपों पर फाइटर जेट तैनात कर दिए. गुरुवार और शुक्रवार को लेइझोउ प्रायद्वीप के पश्चिमी इलाके में चीन ने जोरदार युद्धाभ्यास किया. मतलब साउथ चाइना सी में चीन और अमेरिका के बीच वार-पलटवार जारी है. इसके अलावा अमेरिका चीन के साइबर सुरक्षा उल्लंघन, कोरोना महामारी में बीजिंग की भूमिका और चीन की प्रतिरोधी और अनुचित व्यापार प्रथाओं से भी नाराज है.
7 महीने में पहली बार बाइडेन और जिनपिंग ने एक-दूसरे से फोन पर सीधी बात की
इसके चलते अमेरिका ने चीन से सारे नाते-रिश्ते तोड़ दिए. चाइनीज वायरस के नाम पर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव तक लड़े गए और चीन को अलग-थलग करने के लिए अमेरिका ने पूरा जोर लगा दिया, लेकिन अब अमेरिका और चीन से जो खबर आ रही है वो पूरी दुनिया को चौंका रही है. अमेरिका और चीन में तनाव के बीच 7 महीने में पहली बार जो बाइडेन और शी जिनपिंग ने एक-दूसरे से फोन पर सीधी बात की है. अमेरिका के व्हाइट हाउस और चीन की सरकारी मीडिया ने दोनों नेताओं के बीच बातचीत की पुष्टि भी की है.
दोनों नेताओं के बीच करीब 90 मिनट तक हुई बातचीत
व्हाइट हाउस के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच करीब 90 मिनट तक बातचीत हुई, जिसमें जो बाइडेन ने इंडो पेसिफिक और पूरी दुनिया में शांति, स्थिरता और समृद्धि का मुद्दा उठाया. इसके अलावा दोनों नेताओं ने प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों की जिम्मेदारी पर चर्चा की. मतलब बाइडेन ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका और चीन के रिश्तों को किस तरह से बढ़ाया जाए. चीनी मीडिया ने भी कहा कि शी और बाइडेन की बातचीत खुले दिल से हुई और काफी विस्तृत रही, लेकिन चीन की भोंपू मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने जो दावा किया है, वो अमेरिका की फजीहत करा रहा है.
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक जो बाइडेन ने जिनपिंग के साथ बातचीत में कहा कि अमेरिका का वन चाइना प्रिंसिपल को बदलने का कोई इरादा नहीं है. इसके अलावा अमेरिका ने द्विपक्षीय संबंधों को वापस पटरी पर लाने की दिशा में काम करने पर सहमति जताई है और गलतफहमी से बचने के लिए वो चीन के साथ अधिक स्पष्ट संवाद के लिए तैयार है. तो यहां सवाल ये उठता है कि जो अमेरिका चीन को कोरोना के लिए जिम्मेदार ठहरा रहा था, जो अमेरिका चीन को तकनीक चोर बता रहा था उसी चीन से अमेरिका को रिश्ते सुधारने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या चीन की ताकत के सामने अमेरिका खुद को कमजोर मानने लगा है?
इसमें कोई दोराय नहीं कि आज चीन उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और चोरी की टेक्नोलॉजी के बूते ही सही आज बीजिंग सुपरपावर बनने की ओर बढ़ रहा है. इसकी तस्दीक द नेशनल इंटरेस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट भी करती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की अगली महाशक्ति बनने के लिए बीजिंग मुख्य रूप से आर्थिक, औद्योगिक और तकनीकी टारगेट का पीछा कर रहा है, जो चीन की इकोनॉमी और आईटी सेक्टर को लाभ प्रदान करेगा. चाहे वो F-35 या F-22 जैसे अमेरिकी विमानों और मिसाइल प्रौद्योगिकी के ब्लूप्रिंट की चोरी क्यों न हो. चीन इसके लिए जासूसी का सहारा ले रहा है.
चीन की चोरी से अमेरिका को हर साल 200 से 600 बिलियन डॉलर का नुकसान
बताया जाता है कि चीन की इस चोरी से अमेरिका को हर साल 200 से 600 बिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है. यानी चीन का ये खुफिया अभियान अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि के लिए एक गंभीर खतरा है. बावजूद इसके अगर अमेरिका चीन के खिलाफ सख्त रुख छोड़कर गुफ्तगू पर उतर आया है तो इसका संदेश साफ है कि अमेरिका अगर चीन के आगे सरेंडर करने के मोड में आ चुका है तो आगे का वर्ल्ड ऑर्डर भी साफ है.
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