
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझ में आती है. कोर्ट ने एक रियल स्टेट कंपनी को उसके आदेश का जानबूझकर पालन ना करने के लिए अवमानना का दोषी करार देते हुए ये कहा और उसपर 15 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया. कोर्ट ने रियल एस्टेट फर्म इरियो ग्रेस रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नल्सा) के पास 15 लाख रुपए जमा करने और कानूनी खर्च के तौर पर घर खरीदारों को दो लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया.
कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खरीदारों को पैसा नहीं लौटाया था. जज डीवाई चंद्रचूड़ और जज एमआर शाह की पीठ ने गौर किया कि इस साल पांच जनवरी को उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग के 28 अगस्त के पिछले साल के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें कंपनी को घर खरीदारों को 9 फीसदी ब्याज के साथ रिफंड का निर्देश दिया गया था. पीठ ने कहा कि हमने आपको पांच जनवरी को दो महीने के भीतर राशि लौटाने का निर्देश दिया था. फिर आपने (बिल्डर) आदेश में संशोधन की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसे हमने मार्च में खारिज कर दिया और आपको घर खरीदारों को दो महीने के भीतर पैसा लौटाने का निर्देश दिया.
बिल्डर्स को केवल पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझते हैं
अब फिर से घर खरीदार हमारे सामने अवमानना याचिका के साथ आए हैं कि आपने पैसे का भुगतान नहीं किया है. हमें कोई ठोस कदम उठाना होगा, जिसे याद किया जाए या फिर किसी को जेल भेजना होगा. पीठ ने कहा कि बिल्डर्स को केवल पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझते हैं. रियल्टी कंपनी के वकील ने कहा कि उन्होंने आज 58.20 लाख रुपए का आरटीजीएस भुगतान कर दिया है और घर खरीदारों को देने के लिए 50 लाख रुपए का डिमांड ड्राफ्ट भी तैयार है. इस पर पीठ ने कहा कि आपको मार्च में भुगतान करना था, लेकिन अब अगस्त में आप कह रहे हो कि अब आप कर रहे हो. आपने जानबूझकर हमारे आदेश की अवहेलना की है, हम इसे हल्के में नहीं छोड़ सकते हैं.
कंपनी के वकील ने कहा कि वो देरी और असुविधा के लिए माफी मांगती है. इस पर पीठ ने कहा कि हमें ये माफी स्वीकार्य योग्य नहीं लगती. बिल्डर ने आदेश का पालन नहीं करने के लिए हर तरह की रणनीति अपनाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के आदेश की जानबूझकर और साफ-साफ अवहेलना की गई, इसलिए प्रतिवादी (बिल्डर) को अवमानना का दोषी करार दिया जाता है. भुगतान में देरी का कोई उचित कारण नहीं दिया गया. हम याचिकाकर्ता (घर खरीदार) को पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हैं और ये दिन के कामकाम के घंटों के दौरान हो जाना चाहिए.
जनवरी 2017 में दिए जाने थे फ्लैट
सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को घर खरीदार को कानूनी लड़ाई खर्च के लिए दो लाख रुपए और कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास 15 लाख रुपए जुर्माना के तौर पर जमा कराने को कहा है. हरियाणा के गुड़गांव सेक्टर 67 स्थित ग्रुप हाउसिंग परियोजना दि कोरीडोर्स के घर खरीदारों ने फ्लैट मिलने में देरी होने पर बिल्डर को दिए गए पैसे वापस किए जाने को लेकर उपभोक्ता अदालत का रुख किया था. खरीदारों का कहना है कि उन्होंने बिल्डर को 62,31,906 रुपए का भुगतान कर दिया था. इसके लिए 24 मार्च 2014 को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. उन्हें फ्लैट जनवरी 2017 में दिए जाने थे, लेकिन इसमें देरी होती चली गई.
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(रिपोर्ट- भाषा)